Wednesday, May 25, 2011

देवेंद्रकुमार की बाल कविताओं का अंदाज


देवेंद्रकुमार बच्चों के लिए क्या नायाब कहानियाँ और उपन्यास लिखते हैं और खूब लिखते हैं। मैं 31 जनवरी, 1986 को नंदन में जाइन करने के लिए पहुँचा, तब पहले दिन ही देवेंद्र के जादू को महसूस किया था और फिर दिनोंदिन उसका असर बढ़ता ही गया। नंदन में हम लोग बच्चों के लिए कहानियाँ लिखते समय पहले आपस में खूब अच्छे से डिस्कस कर लिया करते थे। तब मैंने देखा कि कहानी कैसे देवेंद्र के रोम-रोम में बसी हुई है और डिस्कशन के दौरान वे कहानी की किसी ऐसी दिशा की ओर संकेत कर देते कि कहानी लिखते समय वह कुछ की कुछ हो जाती और उसमें नई चमक, तराश और ताजगी आ जाती। बाद में मैं सोचता, अरे, कहानी की यह दिशा तो हमें अज्ञात ही थी। देवेंद्र जी ने किस उस्तादी से हमारा ध्यान उधर खींचा, जो कहानी की बनी-बनाई लीक से एकदम अलग थी और कहानी में जान आ गई।

देवेंद्र का यही जादू और उस्तादी कहानियों के संपादन के समय देखने को मिलती और खुद उनकी कहानियों और उपन्यासों में भी, जिनमें वे बात कहते नहीं हैं, बस चुपके से सरका देते हैं और उस चुपके से कह दी गई बात का असर इतना गहरा होता है कि तमाम-तमाम लीक पर चलने वाली कहानियाँ उसके आगे फीकी और निस्तेज लगती हैं।

पर यहाँ मैं देवेंद्र की कहानियों और उपन्यासों के बारे में ज्यादा नहीं कह रहा। उन पर कुछ लिखने के लिए तो लंबा स्पेस और फुर्सत चाहिए। अलबत्ता, बातों-बातों में एक दिन देवेंद्र की बच्चों के लिए लिखी गई कविताओं का जिक्र चला, और उन्हें पढ़ा तो लगा कि देवेंद्रकुमार की बाल कविताओं का अपना अंदाज है। आगे चलकर हिंदी के नए बालगीत संग्रह निकला जिसमें रमेश तैलंग, देवेंद्र और मेरी चुनी हुई बाल कविताएं हैं। सरला प्रकाशन ने मेरे सुझाव पर बच्चों के अच्छे कवियों की चुनिंदा बाल कविताओं के संचयन निकाले, तो उनमें भी देवेंद्र शामिल थे। उनकी पुस्तक का नाम है, यह है हँसने का स्कूल।

तो मित्रो, देवेंद्र की कविता हँसने का स्कूल पढ़िए और खिल-खिल हँसिए--


यह है हँसने का स्कूल

जल्दी आकर नाम लिखाओ
पहले हँसकर जरा दिखाओ,
बच्चे जाते रोना भूल--
यह है हँसने का स्कूल।

पहले सीखे खिल-खिल हँसना
बढ़कर गले सभी से मिलना,
सारे यहीं खिलेंगे फूल--
यह है हँसने का स्कूल।

झगड़ा-झंझट और उदासी
इनको तो हम देंगे फाँसी,
हँसी-खुशी से झूसम-झूल--
यह है हँसने का स्कूल।

(सरला प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित यह है हँसने का स्कूल पुस्तक से साभार। बच्चों के प्रय कवि पुस्तक-माला। संपादकः प्रकाश मनु)

4 comments:

  1. देवेन्द्र्कुमार जी के बारे में लिख कर आपने एक बढ़िया ऒर आध्यात्मिक काम किया हॆ । ज़रूर पुण्य मिलेगा । देवेन्द्रकुमार जी का मेरे बाल साहित्यकार बनने में पहली ऒर अहं भूमिका रही हॆ जिसे में कभी नहीं भूल सकता ।

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  2. धन्यवाद भाई दिविक जी, आपको पसंद आया तो पुण्य तो मुझे मिल गया। देवेंद्र मेरे लिए उन लोगों में से हैं, जो हर वक्त आपके दिल में बसे होते हैं। उन पर लिखना इसीलिए कठिन भी होता है। बहुत ही डरते-डरते यह पीस लिखा था। आपको अच्छा लगा, यह मेरे लिए बड़े सुख की बात है। सप्रेम, आपका प्र.म.

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  3. देवेन्‍द्र जी की रचनाएं बच्‍चों के लिए किसी हंसमुख साथी की तरह होती हैं। अच्‍छा लगा उनके बारे में पढना।

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    हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
    अब क्‍या दोगे प्‍यार की परिभाषा?

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  4. सुंदर कविता . अगर कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग http://ps4kids.blogspot.in/ पर बच्चों की कवितायें देखने की कृपा करें

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