Tuesday, May 10, 2011

रवींद्रनाथ टैगोर की अद्भुत बाल कविता राजा का महल

इन दिनों रवींद्रनाथ टैगोर की बच्चों के लिए लिखी गई बहुत सी कविताएँ एक साथ पढ़ने का सुयोग मिला। इनमें से जिन कविताओं ने सबसे अधिक मन को खींचा, उनमें टैगोर की कविता राजा का महल भी है। इसमें बच्चे के खेल और कौतुक की दुनिया है, उसका रहस्यों से भरा जिज्ञासा-संसार है और आनद का एक ऐसा भाव है, जिसे बच्चा सिर्फ मां से ही बाँट पाता है।
इस कविता को आप भी पढ़ें, क्योंकि इसे पढ़ने का मुझे लगता है, अपना सुख है। बच्चे ही नहीं, शायद बड़े भी इसका आनंद ले सकते हैं, क्योंकि इस कविता को पढ़ना अपने बचपन को फिर से जी लेने के मानिंद है। कविता में तीन पद हैं और तीनों में ही सुनहले तारों से बुनी बच्र्चे की रहस्य और कौतुक भरी दुनिया। तो अब कविता पढ़िए--

नहीं किसी को पता कहाँ मेरे राजा का राजमहल।
अगर जानते लोग, महल यह टिक पाता क्या एक पल।
इसकी दीवारें सोने की, छत सोने की धात की,
पैड़ी-पैड़ी सुंदर सीढ़ी उजले हाथी दाँत की।
इसके सतमहले कोठे पर सूयोरानी का घरबार,
सात-सात राजाओं का धन, जिनका रतन जड़ा गलहार।
महल कहाँ मेरे राजा का, तू सुन ले माँ कान में,
छत के पास जहाँ तुलसी का चौरा बना मकान में।

सात समंदर पार वहाँ पर राजकुमारी सो रही,
इसका पता सिवा मेरे पा सकता कोई भी नहीं।
उसके हाथों में कँगने हैं, कानों में कनफूल,
लटें पलंग से लटकी लोटें, लिपट रही है धूल।
सोनछड़ी छूते ही उसकी निंदिया होगी छू-मंतर,
और हँसी से रतन झरेंगे झर-झर, झर-झर धरती पर,
राजकुमारी कहाँ सो रही, तू सुन ले माँ कान में,
छत के पास जहाँ तुलसी का चौरा बना मकान में।

बेर नहाने की होने पर तुम सब जातीं घाट पर,
तब मैं चुपके-चुपके जाता हूँ उसी छत के ऊपर।
जिस कोने में छाँह पहुँचती, दीवारों को पार कर,
बैठा करता वहीं मगन-मन जी भर पाँव पसार कर।
संग सिर्फ मिन्नी बिल्ला होता है छत की छाँव में,
पता उसे भी है नाऊ-भैया रहता किस गाँव में।
नाऊ-टोला कहाँ, बताऊँ--तो सुन ले माँ कान में,
छत के पास जहाँ तुलसी का चौरा बना मकान में।

इस कविता का बहुत सुंदर प्रवाहयुक्त अनुवाद किया है युगजीत नवलपुरी ने। युगजीत नवलपुरी के कई सुदर अनुवाद याद आ रहे हैं। पर यह सोचकर मुझ बड़ा दुख और ग्लानि हो रही है कि मैं इस विलक्षण अनुवादक के बारे में कितना कम जानता हूँ।
अगर मित्र इस बारे में कुछ बताएँ, तो अच्छा लगेगा।

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर कविता परोसी है आपने . मन बाग़ बाग़ हो गया .

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  2. प्रिय नागेश, टैगोर ने बच्चों के लिए बहुत सुंदर कविताएँ लिखी हैं, मन को बेहद आनंदित करने वाली और उनमें बच्चों के मनोभावों और जिज्ञासापूर्ण ररहस्य-संसार का इतना कौतुकपूर्ण वर्णन है कि क्या कहा जाए। इनमें से कुछ कविताएँ तो ऐसी हैं कि आप अकेले पढ़ते-पढ़ते ठठाकर हँस पड़ते हैं। कभी मैं उन्हें भी देने की कोशिश करूँगा। सस्नेह, प्र.म.

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  3. प्रिय नागेश, रवींद्रनाथ टैगोर ने बच्चों के लिए बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविताएँ लिखी हैं। उनमें बालक के मनोभावों और जिज्ञासा-संसार का ऐसा कमाल का चित्रण है कि बड़े भी उन्हें पढ़ें, तो उन्हें अपना अबोध जिज्ञासाओं और शरारतों से बरा बचपन याद न आए, ऐसा हो नहीं सकता। इनमें कुछ तो सच्ची-मुच्ची ऐसी कविताएँ हैं कि उन्हें पढ़कर कई बार अकेले में भी हमारी जोर की हँसी छूट जाती है। मैं गुरुदेव टैगोर की कुछ और कविताएँ भी समय-समय पर यहाँ देता रहूँगा। सस्नेह, प्र.म.

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