Tuesday, May 10, 2011

दुकानों के साइनबोर्ड में जो कला है


9 मई, 2011, साहित्य अकादेमी सभागार। अभी कार्यक्रम शुरू होने में देर थी। मैं देवसरे जी के पास बैठा उनकी सेहत का हाल-चाल ले रहा था। तभी उऩकी एक कहानी याद आ गई--जूतों का अस्पताल। हम सब साथियों ने उसका खूब आनंद लिया था और फिर वह नंदन में छपी भी थी। मैंने देवससरे जी से उसकी चर्चा करते हुए कहा कि जाने क्या है आपकी उस कहानी में कि वह भुलाए भूलती नहीं। और फिर उसे पढ़ते ही यह भी याद आता है कि आपने उन दिनों अस्पतालों के खूब चक्कर काटे थे और खासे परेशान रहे थे। पर उन्हीं दिनों लिखी गई आपकी इस कहानी में कहीं उसकी छाया तक नहीं है। सच में बड़ी मजेदार सी कहानी है यह।
इस पर देवसरे जी ने बताया कि मनु, सच में ऐसा साइनबोर्ड मैंने देखा है। एक छोटा सा खोखा था, जिस पर साइनबोर्ड लगा था, जूतों का अस्पताल। और वहीं से यह कहानी आई।--कहते-कहते देवसरे जी मुसकराए।
इस पर मैंने कहा कि देवसरे जी, मैंने जूतों का अस्पताल तो नहीं देखा, पर घड़ियों का अस्पताल जरूर देखा है। और वह भी तब, जब मैं कोई आठ-दस बरस का था। बाजार के बीचोंबीच एक घड़ीसाज की दुकान पर यह बोर्ड लगा था। जितनी बार मैं वहाँ से गुजरता था, वह बोर्ड जरूर मेरी आँखों को खींचता था और मैं बड़े कौतुक से उसे देखता था। कुछ बड़ा हुआ तो उस घड़ीसाज के छोटे भाई से मेरी दोस्ती हो गई। मैंने उसे अपने मन की बात बताई तो वह खूब ठठाकर हँसा। मैं भी हँसा।
इस पर देवसरे जी को एक ओर दिलचस्रप साइनबोर्ड की याद आई। उन्होंने बताया कि उन दिनों विकासपुरी से मैं आया करता था, तो रास्ते में एक दुकान पर खूब बड़ा-बड़ा लिखा होता था--जूते ही जूते। और उसके नीचे बहुत छोटे अक्षरों में लिखा होता था--यहाँ मिलते हैं। कहकर वे हँसने लगे।
इस पर मुझे कुरुक्षेत्र के वे दिन याद आए, जब मैं वहाँ रिसर्च कर रहा था। सरोवर के निकट साइकिलों की मरम्मत करने वाले काले की दुकान थी। उसने अपनी दुकान पर लिख रखा था--
एह काले दी हट्टी,
सोहणा कम्म, थो़ड़ी खट्टी।
यानी यह काले की दुकान हैं। यहाँ काम अच्छा होता है, पर हम ज्यादा पैसे नहीं लेते।
कितनी सुंदर बात। मैं इसे भूला नहीं। सुनकर देवसरे जी और विभा जी ने भी माना कि वाकई ऐसी पंक्तयों में जीवन की कला है।
अगर मित्र लोग ऐसी ही देखी-पढ़ी जीवन की कविता की कुछ पंक्तयों की याद दिलाएंगे, तो मुझे सचमुच खुशी होगी। और खुद मुझे याद आएँगी, तो मैं यहाँ दर्ज करूँगा।
सच्ची बात तो यह कि जिंदगी की कविता, किताबों में लिखी कविता को हमेशा बीट करती है और करती रहेगी।
आपका क्या खयाल है।
आपका प्र.म.

2 comments:

  1. कहानी की कहानी के क्या कहने . वाह जी वाह .

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  2. प्रकाश जी आपका ब्लाग देखा कुछ चीजे तो बहुत सुन्दर हैं। खासकर वरिष्ठ रचनाकारो की रचनाएँ जो बच्चो को ध्यान मे रखकर लिखी गयी हैं। अंतर्जाल की इस खिडकी पर आप महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। बधाई।

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