निरंकारदेव सेवक ने बेजोड़ बाल कविताएँ और शिशुगीत तो लिखे ही, साथ ही हिंदी बाल कविता को दिशा देने का बहुत बड़ा काम किया। वे ऐसी रोशनी की मीनार सरीखे हैं जो आने वाली सदियों तक हमें राह दिखाते रहेंगे। आज बाल कविता का जो रूप है, उसे गढ़़ने में सेवक जी को कितनी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी होंगी, इसकी कल्पना करना तक कठिन है। आज भी अभी बहुतेरे लोग हैं, जो बाल कविता को बच्चे को उपदेस देने वाली परिपाटी से कोई अलग चीज नहीं मानते। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि अपने समय में जब सेवक जी ने घोषणा की होगी कि कविता का काम उपदेश देना नहीं है और जो बाल कविता बच्चे के मन को आनंदित नहीं करती, बच्चा खेल-खेल में जिसे मजे में याद नहीं कर लेता, वह बाल कविता नहीं हो सकती। ऐसा उन्होंने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि इसी कसौटी के आधार पर बाल साहित्य का विस्तृत और बेजोड़ मूल्यांकन किया और बड़े-बड़ों की नाराजगी की परवाह किए बिना साफ-साफ अपनी बातें कहीं। इस लिहाज से सेवक जी की भूमिका हिंदी में किसी भी बड़े से बड़े साहित्यकार से बढ़कर है। यहाँ वे अकेले हैं और मेरा मन बहुत आदर से उनके आगे झुकता है।
सेवक जी से मिलने का मुझे एक ही मौका मिला, जब वे राष्ट्रीय बाल भवन, दिल्ली की गोष्ठी में शामिल होने आए थे और नंदन में भारती जी से मिलने भी पहुँचे। भारती जी ने मुझे भी अपने कमरे में ही बुला लिया और बाल साहित्य को लेकर उनसे देर तर बातें होती रहीं। यहाँ तक कि दफ्तर बंद होने का समय हो गया, तब भी हम लोग बैठे बातें करते रहे। बाद में भारती जी ने मुझसे आग्रह किया कि मैं सेवक जी को बाल भवन छोड़ता हुआ घर जाऊँ। तो रास्ते में और बाल भवन के प्रवेश-द्वार पर भी काफी देर तक खड़े-खड़े उनसे बातें होती रहीं। वे सीधे अपनी बात कहते थे, बगैर लाग-लपेट के और बगैर किसी लल्लो-चप्पो के। पर यही उनकी साफगोई और दृढ़ता ही उन्हें निरंकारदेव सेवक बनाती थी।
अवबत्ता सेवक जी के संग्रह चिड़िया रानी से यहाँ कुछ छोटे-छोटे सुंदर शिशुगीत मैं दे रहा हूँ--
1.
मै अपने घर से निकली,
तभी एक पीली तितली।
पीछे से आई उड़कर,
बैठ गई मेरे सिर पर।
तितली रानी बहुत भली,
मैं क्या कोई फूल-कली।
2.
चींटी भूल गई रस्ता,
आ जा तू मेरे घर आ।
खाने को दूँगा रोटी,
बेसन की मोटी-मोटी।
पानी दूँगा पीने को,
फिर खेलेंगे हम दोनों।
3.
एक शहर है चिकमंगलूर,
रहते वहाँ बहुत लंगूर।
एक बार जब मियाँ गफूर,
खाने गए वहाँ अंगूर।
बिल्ली एक निकल आई,
वह तो थी उनकी ताई।
टाँग पकड़कर पटकी दी,
जय हो बिल्ली ताई की।
(निरंकारदेव सेवक का संग्रह चिड़िया रानी ईशान प्रकाशन, नई दिल्ली से छपा है।)
बहुत मजेदार और प्यारी कविता....
ReplyDeletedhanywad chaitanya. mein koshish karoonga ki tumhari pasand ki kavitaen yahan lagatar jati rahen. sasneh, pmanu
ReplyDeleteकहानी की कहानी ,तुक वाली कविता ! आनंद ही आनंद !
ReplyDeleteसुधा भार्गव
सुधा जी,
ReplyDeleteसेवक जी के यहाँ ऐसी कई सुंदर कविताएं हैं जिनमें कविता में बड़ी मोहक किस्सागोई चलती है। कोशिश करूँगा कि उनकी कुछ बढ़िया बाल कविताएँ और यहाँ प्रस्तुत करूँ। प्र.म.