आज नागेश पांडेय संजय के ब्लाग बालमंदिर,ब्लागस्पाट.काम पर भारती जूी की कविता पर एक टिप्पणी दर्ज की। उसे यहाँ भी दे रहा हूँ। यह टिप्पणी खुद में पूरी तो नहीं है, पर इससे शायद भारती जी के बारे में कुछ लिखने का आधार मिल जाएगा। और हो सकता है कि मन की कुछ बातें कही जाएँ।
अलबत्ता, वह टिप्पणी हाजिर है--
प्रिय नागेश, भारती जी की ज्यादा सुंदर कविता तुमने नहीं चुनी। भारती जी ने कुछ बड़ी बेजोड़ कविताएँ लिखी हैं। एक था राजा, एक थी रानी, दोनों भरते थे पानी...भारती जी की बड़ी सुंदर कविता है। ऐसे ही पगलो मौसी सरीखे कई बढ़िया शिशुगीत हैं। आगे कभी उन्हें भी दें। भारती जी के फूलों के गीत ज्यादा स्वाभाविक मुझे नहीं लगते। हालाँकि वे जब लिखे गए, तब का मैं गवाह हूँ। अकसर वे सुनाते थे, करीब-करीब रोज ही। उनका पैट वाक्य था--आचार्य, बैठो। बाकी काम इस वक्त छोड़ दो, यह कविता देखो। जब कोई साहित्यिक विमर्श करना होता था, तब उनका यह हलका-फुलका अनौपचारिक अंदाज होता था। ...तो इन कविताओं पर भी उनसे चर्चा होती थी। वे खुलकर सुझाव माँगते थे, कुछ पर अमल भी करते थे। अलबत्ता कविता पढ़कर भारती जी की याद आ गई। मेरी आँखें नम हैं। उनसे कुछ असहमतियाँ थीं, पर उनमें बहुत कुछ ऐसा था जिसे मैं उम्र भर याद करता रहूँगा। और सच यह भी है कि वे मुझे नंदन में आग्रहपूर्वक न लाए होते, तो आज बाल साहित्य से मेरा ऐसा रिश्ता न होता। उनसे मेरी असहमतियाँ थीं, पर वे बेशक मेरे गुरु थे जिनके लिए आज भी मेरा सिर आदर से झुकता है। सस्नेह, प्र.म.
जयप्रकाश भारती जी की याद करके मुझे तो आपने रुला ही दिया । इतने बड़े इंसान,
ReplyDeleteआजीवन बालक, बाल-साहित्य ऒर बाल-साहित्य्कारों के प्रति हर घड़ी समर्पित ऎसा साहित्यकार ऒर संपादक हिन्दी क्या मुझे ऒर भाषाओं में भी देखने की तमन्ना हॆ । स्वाभीमान के धनी थे लेकिन अहंकार रत्ती भर भी नहीं । मेरे कोरिया प्रवास के दॊरान तो विशेष रूप से उनके पत्रों ने मुझे अद्भुत बल दिया था, ऒर प्रेरणा भी । हम कृत्घन होंगे यदि समय रहते उनके दिए का सही सही मूल्यांकन नहीं कर पाते । वे अपनी अभिव्यक्ति में स्पष्ट ऒर मजबूत थे लेकिन आज की कुछ तथाकथित बहुत नामी गरामी विभूतियों की गुट्बाजियों, पूर्वाग्रही संकीर्णताओं,अहसानों से लादने ऒर अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापने की सड़ांधभरी तथा ईर्ष्यालु वृतियों से अलग । इसीलिए कई बार उन्हें ठीक से समझने में कइयों को कठिनाई भी हो जाती थी । भले ही वे कई बहुत बार अपनी अभीव्यक्तियों में वॆसे ही दिख जाते हों ।सच तो यह हॆ कि उनकी बॊछारें सब के लिए थीं । उनका व्यवहार नकली हो ही नहीं सकता था । दिखावा या बनावटीपन उनमें दुर्लभ ही नहीं असम्भव था ।वे हॆंस क्रिश्चियन ऎंडरसन जॆसे विश्वविख्यात सम्मान से सम्मानित होने वाले अकेले भरतीय लेखक थे जो हिन्दी से थे । यह कम बड़ी बात नहीं हॆ । यह हमारा गर्व भी हॆ ऒर गॊरव भी । ।समकालीन समयों में भारतीय पुरस्कारों/सम्मानों के प्रश्नों के घेरे में आते चले जाने के बावजूद । उनके द्वारा संपादित पुस्तक "हिन्दी के श्रेष्ठ बाल-गीत" जिसमें सुना हॆ प्रकाश मनु जी का भी सहयोग रहा था, आज भी एक चमकती हुई किताब हॆ भले ही बहुतों के गले में वह अटकती भी हो । किसी बड़े साहित्यकार की एक यह भी पहचान होती हॆ कि उसने अपने साहित्यिक क्षेत्र में बिना लागलपेट के कितने सार्थक ऒर अच्छे लेखक दिए याने प्रोत्साहित किए । भारतीजी के समक्ष इस दृष्टि से उनके समय में यदि एक भी हिदी लेखक हो तो उसका नाम मॆं आदर सहित जानना चाहुंगा । कुछ छोटे मुंह बड़ी बात हो गई हो तो क्षमा कर दिया जाऊं, क्योंकि जानबूझकर किसी का भी दिल दुखाना या किसी काभी अपमान करना मुझे नहीं आता ।
भाई दिविक जी, मैंने आपके ब्लाग पर कुछ कमेंट देना चाहा, पर उसे स्वीकार नहीं किया गया। मुझे बताया गया कि आपके अप्रूवल के बाद वह विजिबल होगा।
ReplyDeleteअलबत्ता, यहाँ उसे फिर से दे रहा हूँ--
भाई दिविक जी, भारती जी पर आपकी यह निश्छल भावावेगपूर्ण टिप्पणी मन में गहरे उतर जाती है। भारती जी आज नहीं हैं, पर हम उन्हें इतनी शिद्दत और निश्छल आवेग से याद कर रहे हैं, नम आँखों के साथ, यही उनका बड़प्पन है।
thankyou uncle....your book of angels is amazing....do visit us soon. :)
ReplyDeleteधन्यवाद आरती बिटिया, अच्छा लगा तुम्हारा कमेंट। ब्लाग का डिजायन बदलकर तुमने एकदम नया सा लुक दे दिया। बहुत सी चीजों का पता ही नहीं था, अब आसानी हो गई। नए जमाने के बच्चों से अभी बहुत कुछ सीखना है। सस्नेह, प्र.म.
ReplyDeleteआपके ब्लाग को नए रूप में देखकर बड़ी ख़ुशी हुयी . बाल साहित्य को लेकर चर्चा का माहौल बनता देख मन झूम सा उठता है . आपके प्रति हार्दिक आभार . आपके आशीर्वाद से गदगद .आपका स्नेह भाजन , नागेश
ReplyDeletehttp://baal-mandir.blogspot.com/
http://nageshpandeysanjay.blogspot.com/
http://abhinavsrijan.blogspot.com/
Are waah, Blog Jagat men aapko dekh kar ateev prasannta ho rahi hai.
ReplyDeleteMain bhi us kavita ko dekhta hoon, Aabhar.
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खुशहाली का विज्ञान!
ये है ब्लॉग का मनी सूत्र!
आप सब मित्रों का बहुत-बहुत आभार। मैं शायद कुछ करना चाहता हूँ। मेरे लिए ब्लाग सबसे पहले और अंत में भी सार्थक संवाद की पहल है।
ReplyDeleteमैं चाहता हूँ कि ब्लाग पर सिर्फ अपनी रचनाएँ या अपने बारे में ही न दूँ। मुख्य रूप से तो यह साहित्यिक मित्रों से संवाद का जरिया बने। जो भी अच्छी किताबें मैं पढ़ूँ, उनकी चर्चा यहाँ करना चाहूँगा। साथ ही जो भी अच्छी रचनाएँ मन को छू जाती हैं, मैं चाहूँगा कि अंश रूप में ही सही, वे अपने मित्रों के लिए यहाँ प्रस्तुत करूँ। शुरू में हो सकता है कि बाल साहित्य पर ही ज्यादा फोकस हो। इन दिनों बाल साहित्य का इतिहास पूरा करने के सिलसिले में रात-दिन बाल साहित्य ही पढ़ रहा हूँ। मन करता है, बच्चों के लिए जो अद्भुत और बेजोड़ चीजें लिखी जा रही हैं, मेरे मित्र भी उन्हें पढ़ें और उनकी संवेदना से जुड़ें। सस्नेह, प्र.म.
कल था सृजन का जन्म दिन . बाल मंदिर में पढ़िए जन्म दिन आपको मुबारक हो (डा. शेरजंग गर्ग )
ReplyDeletehttp://baal-mandir.blogspot.com/