अभी थोड़ी देर पहले ही शमशेर की कविता और कवि शख्सियत पर दिविक का एक यादगार संस्मरणात्मक लेख उनके ब्लाग पर पढ़ा। उस पर यह टिप्पणी दिविक को एक पत्र के रूप में है--
दिविक जी, यह अद्भुत संस्मरण है, मन को बहुत गहरे भिगो देने वाला। शमशेर की शख्सियत के हर रंग को आपने पकड़ा है--उनकी फक्कड़ता, उनकी सरलता और एक अजब तरह की पवित्रता लिए काव्य-दृष्टि, जो कभी किसी बड़े से बड़े दबाव के आगे नहीं झुकी, और उन्हें जो कहना होता था, वे कहते थे और अपनी परी शमशेरियत के साथ कहते थे, जिसे टूटकर कहना या लिखना आपने कहा, जिससे उनके शब्द दिल में गहरे उतरते जाते थे, फिर चाहे कविता हो या गद्य। एक अजब सी सरलता के साथ एक अजब सी खुद्दारी और दृढ़ता, अपनी बात हमेशा अपने अंदाज में कहने की जिद्दी तड़प--और भी न जाने कौन-कौन सी चीजें रही होंगी, जो किसी शमशेर को शमशेर बनाती हैं। वैसा ही मुकम्मल कवि और मुकम्मल इनसान कि जैसे शमशेर थे और शायद सिर्फ शमशेर भी हो सकते थे। और फिर अपने बाद वाली पीढ़ी गले लगाने और आगे बढ़ते देखने की कैसी आकुलता--आपने लिखा है और खूब लिखा है। और फिर मैं भी पूरा, मेरा साहिब भी पूरा का उनका कबीरी ठाट--यह तो मैं शायद ताजिंदगी नहीं भूल पाऊँगा। एक भीतर तक भिगो देने वाले आत्मीय संस्मरण को पढ़वाने के लिए आभार। शमशशेर पर आपकी कविता भी बहुत डूबी-डूबी सी है जिसममें शमशेर समा गए लगते हैं। सस्नेह, आपका प्र.म.
धन्यवाद प्रकाश मनु जी ।
ReplyDeleteमुझे सुख मिला दिविक जी, आप तक यह टिप्पणी आखिर पहुँच गई। यों उस दिन मुश्किल आ रही थी, पर बाद में मैंने देखा कि वह
ReplyDeleteटिप्पणी आपके ब्लाग पर मौजूद है। और कौन-कौन से ब्लाग आप सजेस्ट करेंगे, जहाँ साहित्य की चर्चा तो हो, पर अनावश्यक दोषारोपण न हो। सस्नेह. मनु