Monday, May 23, 2011

कन्हैयालाल मत्त की अद्भुत बाल कविताएँ

मुझे याद है, मैं किशोरावस्था में था, तब कन्हैयालाल मत्त, बालकृष्ण गर्ग, सूर्यभानु गुप्त और दामोदर अग्रवाल जी के बालगीत अकसर धर्मयुग के पन्नों पर छपा करते थे। वे मुझे इतने अच्छे लगते थे कि मैं उन्हें काटकर एक डायरी में चिपकाता था, फिर घर और आसपास के बच्चों को इकट्ठा करके उन्हें सुनाया करता था। सुनकर बच्चे झूम उठते थे।

मत्त जी की उन कविताओं की खुशबू अब भी मन में बसी हुई है। बाद में तो ऩंदन के कवि एकः रंग अनेक में उनकी कविताएँ छापने की योजना बनी, तो उन्हें और भी जमकर पढ़ने का मौका मिला। उनसे मिलने का भी प्यारा सुयोग मुझे मिला। और जब-जब उनसे मिला, हर बार यही लगा, ईश्वर ने उन्हें एक से एक मोहक बाल कविताएँ लिखने के लिए धरती पर भेजा है। उनसे मिलने पर अच्छी बाल कविताओं की चर्चा हुई तो उन्होंने एक बात कही थी जो मैं आज तक नहीं भूल पाया। उनका कहना था कि अच्छी बाल कविता वह है, जिसे पढ़कर बच्चे के मन की कली खिल जाए।

आज भी मुझे लगता है, बाल कविता, बल्कि समूचे बाल साहित्य की इससे सटीक और सार्थक परिभाषा कोई और हो नहीं सकती।

अलबत्ता, यहाँ बाल साहित्य से जुड़े मित्रों और बाल पाठकों के लिए मत्त जी की यह कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ--


चिड़िया रानी, किधर चली

चिड़िया रानी
चिड़िया रानी,
किधर चली।

मुन्ने राजा
मुन्ने राजा,
कुज-गली।

चिड़िया रानी,
चिड़िया रानी,
पर निकले।

मुन्ने राजा
मुन्ने राजा,
नीम के तले।

चिड़िया रानी
चिड़िया रानी,
टी टुट-टुट।

मुन्ने राजा
मुन्ने राजा
चाय-बिस्कुट।

चिड़िया रानी
चिड़िया रानी,
टा-टा-टा।

मुन्ने राजा
मुन्ने राजा,
सैर-सपाटा।

(सरला प्रकाशन, दिल्ली से छपी पुस्तक जमा रंग का मेला से साभार। बच्चों के प्रिय कवि पुस्तक-माला।
चयन-संपादनः प्रकाश मनु)

1 comment:

  1. शाब्दिक संकेत और उसकी अनुभूति बाल गीत की जान है I
    सुधा भार्गव

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