Wednesday, May 4, 2011

डा. सुनीता का बाल साहित्य


डा. सुनीता ने बच्चों के लिए खास तौर से कहानियाँ लिखी हैं। ऐसी कहानियाँ जिनमें गँवई गंध है। वे बहुत छुटपन से गाँव में अपनी नानी के पास रहीं और वे दिन संभवतः उनके जीवन के सबसे अअनमोल दिन थे। उऩ्हीं को उन्होंने अपनी बहुत सहज-सरल कहानियों में वड़े निराले अंदाज में बाँधा। उनकी बच्चों के लिए लिखी गई कहानियों के संग्रह हैं - नानी के गाँव में, खेल-खेल में बातें, फूलों वाला घर तथा दादी की मुसकान
इन किताबों में खेल-खेल में बातें इस लिहाज से एकदम अलग है कि इसमें बहुत छोटी-छोटी कहानियाँ और अंतरंग लेख हैं, जो एकदम छोटे बच्चों को खेल-खेल में सदाचार का पाठ पढ़ाती हैं।
धुन के पक्के डा. सुनीता की बाल जीवनियों की पुस्तक है जो जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में बड़ा काम करने वाले धुन के पक्के नायकों के जीवन और कामों के बा रे में बड़े रोमांचक अंदाज में बताती है।

1 comment:

  1. लेखकमंच वेबसाइट पर प्रकाशित डॉ. सुनीता की बाल कहानी रजत की क्यारी में पिल्लै पर मैंने एक छोटा सा कमेन्ट दिया था. संदर्भवश उसे यहाँ भी जोड़ रहा हूँ.
    वैसे आजकल पत्रिका के बाल साहित्य विशेंशंकों में सुनीता की कहानियों पर मैंने कई बार टिप्पणिया की हैं. उनका सार चंद शब्दों में निम्नवत है.

    सुनीता की बाल कहानियों की खासियत है कि उनमें छोटी-छोटी पारिवारिक घटनाओं की बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुति मिलती है. वे अनावश्यक विस्तार से बचती हैं और स्वयं के स्मृतिकोष का इस्तेमाल करते हुए अपने और दूसरों के बचपन को इतने स्वभाविक रूप से कहानी में ढालती हैं कि उसकी कलात्मकता पीछे छूट जाती है- ऐसा बहुत कम बाल कहानी लेखक कर पाते हैं.
    उनकी बाल कहानियों में पारिवारिक चित्र और चरित्र जीवंत रूप में देखे जा सकते हैं. मैं उनकी बाल कहानियों को शायद इसीलिए अनगढ़ सौंदर्य एवं गँवई सुंगंध से युक्त रचना मानता हूं.

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