Friday, May 6, 2011

बाल साहित्य का आलोचना-पक्ष

इधर बाल साहित्य के आलोचना-पक्ष को लेकर को लेकर कुछ ढंग के लेख पढ़ने को मिले हैं। किताबें भी आई हैं। कुछ अच्छे काम वाकई हुए हैं और इस लिहाज से जो सजगता आई है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। डा. उषा यादव, चक्रधर नलिन, सुरेंद्र विक्रम, शकुंतला कालरा के कई लेखों में बाल साहित्य के इतिहासपरक अध्ययन की दृष्टि नजर आती है।

नागेश पांडेय संजय ने भी गंभीरता से काम शुरू किया है, पर उन्हें अभी और सतर्कता से यह परख करनी होगी कि आखिर वे कौन सी रचनाएँ हैं जो एक मयार बनाती हैं या बाल साहित्य की किसी विधा या धारा विशेष में एक बड़ा मोड़ उपिस्थत करती हैं। इसकी पकड़ हो तो आप सामान्य रचनाओं की भीड़ में से हमेशा अच्छी और यादगार रचना चुन लेते हैं। और सवाल सिर्फ अच्छी और बुरी में से अच्छी रचना चुनने का ही नहीं है, सवाल तो अच्छी और ज्यादा अच्छी में से ज्यादा अच्छी रचना चुनने का है और यह फैसला कहीं अधिक कठिन और चुनौतीभरा होता है। एक अच्छे से अच्छा रचनाकार जो कुछ लिखता है, वह सबका सब महत्वपूर्ण नहीं होता। इसे वह खुद जानता है। और इसे परखने की नजर आलोचक के पास होनी चाहिए।

मुक्तिबोध ने लिखा है कि अच्छे और बुरे के संगर से कहीं अधिक कठिन है अच्छे और अधिक अच्छे का संगर। इस संगर में कई बार आलोचक को लहूलुहान होना पड़ता है। लोग बुरा मानते हैं। उनका गुस्सा, नाराजगी और न जाने क्या-क्या सहना पड़ता है। पर यहीं एक अच्छे आलोचक की परख भी होती है।

इस कसौटी पर खऱे उतरने वाले ज्यादा लोग हमारे पास नहीं हैं। पर हैं। और यही चीज है जो आगे आऩे वाले समय में बाल साहित्य की ऊँची पताका लहराएगी।

2 comments:

  1. प्रणम्य भाई साहब , आपकी टिप्पणियां बाल साहित्य के उत्थान में अहम् भूमिका का निर्वाह करती हैं . मुझे तो आपसे बहुत बल मिलता है . हाँ , आपने पुरानी यादों के रूप में बड़े ही संग्रहणीय चित्र प्रस्तुत किये हैं .इनमें आपके साथियों के नाम तो होने ही चाहिए . ... फिर सभी लोग जान पहचान सकेंगे .
    आज बाल मंदिर (http://baal-mandir.blogspot.com/) में मयंक जी की कविता लगायी है . सतप्रेरणा के लिए आपका हार्दिक आभार . आपका अनुज नागेश

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  2. धन्यवाद प्रिय नागेश, इस बात पर मेरा ध्यान नहीं गया था। अब जल्दी ही फोटो के साथ कैप्शन भी दूँगा। हम सब लोग मिल-जुलकर काम करें तो बाल साहित्य की दुनिया में कुछ काम हो सकता है। जबकि अभी तो बहुत काम करने की दरकार है।

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