tag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post2017420229853991984..comments2018-05-09T02:43:28.219-07:00Comments on Prakash Manu... प्रकाश मनु: दिविक रमेश का बालनाटक बल्लू हाथी का बालघरPrakash Manu प्रकाश मनुhttp://www.blogger.com/profile/04172383673707393967noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-34742296837421310252011-05-23T22:30:43.367-07:002011-05-23T22:30:43.367-07:00मुझे भरोसा तो पहले ही था । आपने इसे फिर पुख्ता कर ...मुझे भरोसा तो पहले ही था । आपने इसे फिर पुख्ता कर दिया हॆ । जिनसे अपेक्षाएं होती हॆं उन्हीं को मन के भय से परिचित भी कराया जाता हॆ ऒर सलाह रूपी टोटके से नज़र भी उतारी जाती हॆ।<br />सस्नेह: दि.र.Divik Rameshhttps://www.blogger.com/profile/16991072115170775605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-69609901215301162012011-05-23T05:01:49.499-07:002011-05-23T05:01:49.499-07:00दिविक भाई,
आपकी यह टिप्पणी मैंने देखी थी और इस पर...दिविक भाई, <br />आपकी यह टिप्पणी मैंने देखी थी और इस पर दो शब्द कहना भी चाहता था, पर फिर यह एकाएक गायब हो गई। मुझे समझ में ही नहीं आया कि यह हुआ क्या। और इसीलिए इस पर जो लिखना चाहता था, वह भी छूट गया।<br /><br />पर आज देखता हूँ कि यह टिप्पणी फिर से मौजूद है। मुझे लगता है, पीछे दो-तीन दिन ब्लागस्पाट के कुछ गड़बड़ी के रहे। खुद मेरी लिखी बहुत सी टिप्पणियाँ गायब हुईं। तो वही हाल आपकी टिप्पणी का भी हुआ होगा।<br /><br />और अब आपकी बात। मैं शुक्रगुजार हूँ कि आपने एक अच्छी, बहुत ही अच्छी सलाह दी। पर दिविक जी, इस मामले में मेरे गुरु रामविलास जी हैं, जिनकी मैं जानता हूँ, आप भी बेहद कद्र करते हैं। उन्होंने मुझे सिखाया था कि प्रकाश मनु,तुम्हारा मन जिसे ठीक कहता हो, वह कहो और करो...और इस मामले में किसी बड़े से बड़े शक्तिशाली शख्स की परवाह मन करो। आपकी राय भी कुछ ऐसी ही है। यकीन मानिए, प्रकाश मनु उनमें से नहीं, जो अपनी लीक छोड़़कर सुविधाओं के रास्ते पर चल पड़े हैं। मुझे मुश्किलें झेलने और अकेले चलने की आदत है और यह आदत अंत तक मेरे साथ रहेगी। मैं आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूँ। <br />सस्नेह, प्र.म.Prakash Manu प्रकाश मनुhttps://www.blogger.com/profile/04172383673707393967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-67576392286060951682011-05-13T23:01:47.633-07:002011-05-13T23:01:47.633-07:00प्रिय नागेश, रमेश तैलंग की कविता बालमंदिर में देख ...प्रिय नागेश, रमेश तैलंग की कविता बालमंदिर में देख ली और उसे पढ़कर आनंदित भी हुआ। कविता तो सचमुच जादूगरी सरीखी है...पर उसके लिए तुमने जो बिल्ली ढूँढ़ी है, वह भी कम गजब की नहीं है।<br />कुल मिलाकर तुम्हारे उत्साहपूर्ण आयोजन की बार-बार तारीफ करनी ही पड़ती है। एक सही रास्ता तुमने पकड़ा है, इस पर तुम्हें दूर तक जाना है। सस्नेह, प्र.म.Prakash Manu प्रकाश मनुhttps://www.blogger.com/profile/04172383673707393967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-9215773325683642642011-05-12T06:27:44.724-07:002011-05-12T06:27:44.724-07:00आप से हमें ऒर हिदी बाल साहित्य को बहुत आशाएं हॆं ...आप से हमें ऒर हिदी बाल साहित्य को बहुत आशाएं हॆं । बस कुछ तथाकथित महान लोगों तक की दलबंदियों के दुराग्रहों से बचे रहे । उससे अन्तत: कुछ हांसिल होने वाला नहीं हॆ ।Divik Rameshhttps://www.blogger.com/profile/16991072115170775605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-7545341388176848482011-05-12T04:30:02.637-07:002011-05-12T04:30:02.637-07:00धन्यवाद भाई दिविक जी और प्रिय नागेश भाई, आप लोगों ...धन्यवाद भाई दिविक जी और प्रिय नागेश भाई, आप लोगों की राय जानकर थोड़ा बल मिला। यों ससमझिए कि शुरुआत शाययद ठीक-ठाक रही। मैंने तय किया है कि बाल साहित्य की जो भी महत्वपूर्ण पुस्तकें मेरे पास आएँगी, उनका जिक्र यहाँ करता रहूंगा। ताकि नए आने वाले अच्छे बाल साहित्य के बारे में सभी को एक जगह जानकारी मिल जाए।<br />देखिए, कितना मैं कर पाता हूँ। पर यह कोशिश करता रहूँगा, यह वचन मैं देता हूँ। सस्नेह, प्र.म.Prakash Manu प्रकाश मनुhttps://www.blogger.com/profile/04172383673707393967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-59653387956613860542011-05-11T21:51:46.739-07:002011-05-11T21:51:46.739-07:00प्रकाश मनु जी ! आपने बहुत ही मन से पढ़ा हॆ इस बाल न...प्रकाश मनु जी ! आपने बहुत ही मन से पढ़ा हॆ इस बाल नाटक को । ऒर मन से ही प्रतिक्रिया दी हॆ । ऎसी ही बेलाग ऒर वस्तुपरक प्रतिक्रियाओं से साहित्य ऒर स्वयं लेख का वास्तविक भला होता हॆ। सच में आपकी टिप्पणी पढ़ कर बहुत अच्छा लग रहा हॆ -केवल इसलिए नहीं की उसमें प्रशंसा हॆ बल्कि इसलिए कि आपकी अभिव्यक्ति सच्ची ऒर ईमानदार हॆ । <br /><br />ऒर देखिए न सोने पर सुहागा । डॉ. नागेश पांडेय "संजय" ने, जो स्वयं एक महत्तवपूर्ण-उल्लेखनीय रचनाकार हॆं ऒर साथ ही रचनाओं के मर्मज्ञ पारखी हॆं, अपनी राय देकर मुझे ऒर नाटक को ऒर महत्तव्पूर्ण बना दिया हॆ । उन्हें भी धन्यवाद । दिविक रमेशDivik Rameshhttps://www.blogger.com/profile/16991072115170775605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5770204405653136666.post-67191173535229124052011-05-11T07:21:24.495-07:002011-05-11T07:21:24.495-07:00सम्मान्य दिविक जी की लेखनी का जबाब नहीं . उनकी कव...सम्मान्य दिविक जी की लेखनी का जबाब नहीं . उनकी कवितायेँ मुझे विशेष प्रिय हैं . किशोरों के लिए उनका प्रदेय अद्भुत है . उनसे मिलाने के लिए आपको धन्यवाद.<br /><br /> ... हाँ , आज आदरणीय रमेश तैलंग जी की कविता है बाल मंदिर <br />http://baal-mandir.blogspot.com/<br /> में .<br /><br /> श्रद्धेय रवीन्द्र नाथ जी की कविता भी जल्दी ही प्रस्तुत कर आपकी भावनाओं को नमन करूँगा. <br />आपका अनुज , नागेशडॉ. नागेश पांडेय संजयhttps://www.blogger.com/profile/02226625976659639261noreply@blogger.com